Thursday 16 April 2020

मछली-सी बनी जिन्दगी


मछली-सी बनी जिन्दगी





बचपन में सुना था कि

“मछली जल की रानी है

जीवन उसका पानी है

बाहर निकालो मर जाएगी

पानी में ड़ालो जी जाएगी”



आज तो लगे ऐसे कि

ये पंक्तियाँ मनुष्य पर लागू हो रही

मछली-सी बनी यह जिन्दगी

बाहर निकलते ही घर से

मछली की तरह समाप्त हो रही



किया हमने ही मजबूर इसे

प्रकृति का क्रोध है बरस रहा

बाहर लहरा रहें पेड़-पौधे

खुशियों में नाच रहे पशु-पक्षी

और मनुष्य घरों की जेलों में बंद हो गए

                  

मछली-सी बनी यह जिन्दगी

बाहर निकलते ही घर से

मछली की तरह समाप्त हो रही



कैसा अनोखा खेल है यह

किए जो भी आविष्कार

बनाए सुख-साधन, किया धन अर्जन

सब हो गए बेकार

हल्के पड़ गए मानव के सब हथियार



मछली-सी बनी यह जिन्दगी

बाहर निकलते ही घर से

मछली की तरह समाप्त हो रही



बस अपना चलता नहीं

जब प्रकृति क्रोध उतारती है

बसी बसाई यह दुनिया

चुटकियों में समाप्त हो जाती है



निराश न हो अब इतना भी

अभी जीवन सुरक्षित है हमारा

यह तो केवल एक सबक था

प्रकृति के साथ खिलवाड़ का



फिर क्यों इतना घमंड

क्यों भरी पड़ी इतनी अकड़

इर्ष्या-द्वेष, आगे बढ़ने की होड़

ठहर जरा, प्रकृति कुछ सीख दे रही हमें



याद दिला रही है वो पुरानी बातें

वो नीला आसमान

वो सितारों से भरी राते

बरसा रही थी प्रकृति जब खुशी की सौगाते



मिल रहा जो भी हमें

उसका तहदिल से धन्यवाद करें

अपव्यय, साधनों के फालतू प्रयोग न करें

जीवन को मछली-सा बनाने से बचे





आगे आने वाली पीढियों में

हमारे ही बच्चे, साथी होगे

सोचो कैसे निर्वाह करेगें वह

साधनों के अभाव और

प्रकृति के प्रकोपों को कैसे सहेंगे वह



खर्च करना ही है तो कीजिए ना

किसने रोका है

दिल खोल के कमाओ और खर्च करो

अपने गुणों को



सहयोग की भावना को बढ़ाओ

एक-दूसरे के प्रति प्यार बरसाओ

इर्ष्या-द्वेष, आगे बढ़ने की भावना से परे

एक साथ आगे आओ

वही पुरानी प्रकृति सब मिलकर बसाओ



हम अक्सर कहते भी तो है

जो जैसा होता है, वैसा ही अच्छा लगता है

बनावटीपन सुन्दरता को ढक लेता है

तन-मन-धन से बाहर जो भी हम देते है

वो दुगना होकर मिलता है



तो प्रकृति को भी उसका स्वरूप चाहिए

वही हरियाली, साफ हवा चाहिए

भागती हुई जिन्दगी में

बीच-बीच में थोड़ा ठहराव चाहिए



मनुष्य-प्रकृति में जब अनुपात सही होगा

सही अर्थ में एक सुन्दर संगम होगा

फिर वो दिन दूर नहीं जब

प्रकृति का प्यार भर-भर कर

हर घर में बरसेगा !!!







                                          लेखिका - रीना यादव

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