Friday 18 September 2020

परिवर्तन - एक नियम जहाँ का, रीना यादव

 

परिवर्तन 

परिवर्तन एक नियम जहाँ का
हमेशा से स्थाई रहा है
आज है वो कल नहीं था
परिवर्तन हर तरफ छाया हुआ है 

और मजे की बात यह कि
मनुष्य परिवर्तन से घबरा रहा
स्थाई तो पहले से ही कुछ नहीं था
परिवर्तन केवल स्थाई है रहा 

फिर क्यों हम डर रहे
परिस्थिति से क्यों भाग रहे
क्यों नहीं परिवर्तन को अपना रहे
अपने आप को क्यों कमज़ोर बना रहे
 
कठिन परिवर्तन को अपनाना है
लेकिन अपनाने से आसान हमें
लगता भाग जाना है
अपनी शक्तियों को हम क्षीण कर रहे
कमज़ोरी के दलदल में दिन-प्रतिदिन डूब रहे
 
कर सामना परिवर्तन का
न डर हार से
सम्मान से सर ऊचा रख
मत भाग परिवर्तन की मार से
 
एक नया मनुष्य जन्म लेगा फिर
परिवर्तन जो जहाँ में खुद लाएगा
और वह दिन भी दूर नहीं
जब सारा जग वही परिवर्तन अपनाएगा !


लेखिका - रीना यादव 

Thursday 16 April 2020

मछली-सी बनी जिन्दगी


मछली-सी बनी जिन्दगी





बचपन में सुना था कि

“मछली जल की रानी है

जीवन उसका पानी है

बाहर निकालो मर जाएगी

पानी में ड़ालो जी जाएगी”



आज तो लगे ऐसे कि

ये पंक्तियाँ मनुष्य पर लागू हो रही

मछली-सी बनी यह जिन्दगी

बाहर निकलते ही घर से

मछली की तरह समाप्त हो रही



किया हमने ही मजबूर इसे

प्रकृति का क्रोध है बरस रहा

बाहर लहरा रहें पेड़-पौधे

खुशियों में नाच रहे पशु-पक्षी

और मनुष्य घरों की जेलों में बंद हो गए

                  

मछली-सी बनी यह जिन्दगी

बाहर निकलते ही घर से

मछली की तरह समाप्त हो रही



कैसा अनोखा खेल है यह

किए जो भी आविष्कार

बनाए सुख-साधन, किया धन अर्जन

सब हो गए बेकार

हल्के पड़ गए मानव के सब हथियार



मछली-सी बनी यह जिन्दगी

बाहर निकलते ही घर से

मछली की तरह समाप्त हो रही



बस अपना चलता नहीं

जब प्रकृति क्रोध उतारती है

बसी बसाई यह दुनिया

चुटकियों में समाप्त हो जाती है



निराश न हो अब इतना भी

अभी जीवन सुरक्षित है हमारा

यह तो केवल एक सबक था

प्रकृति के साथ खिलवाड़ का



फिर क्यों इतना घमंड

क्यों भरी पड़ी इतनी अकड़

इर्ष्या-द्वेष, आगे बढ़ने की होड़

ठहर जरा, प्रकृति कुछ सीख दे रही हमें



याद दिला रही है वो पुरानी बातें

वो नीला आसमान

वो सितारों से भरी राते

बरसा रही थी प्रकृति जब खुशी की सौगाते



मिल रहा जो भी हमें

उसका तहदिल से धन्यवाद करें

अपव्यय, साधनों के फालतू प्रयोग न करें

जीवन को मछली-सा बनाने से बचे





आगे आने वाली पीढियों में

हमारे ही बच्चे, साथी होगे

सोचो कैसे निर्वाह करेगें वह

साधनों के अभाव और

प्रकृति के प्रकोपों को कैसे सहेंगे वह



खर्च करना ही है तो कीजिए ना

किसने रोका है

दिल खोल के कमाओ और खर्च करो

अपने गुणों को



सहयोग की भावना को बढ़ाओ

एक-दूसरे के प्रति प्यार बरसाओ

इर्ष्या-द्वेष, आगे बढ़ने की भावना से परे

एक साथ आगे आओ

वही पुरानी प्रकृति सब मिलकर बसाओ



हम अक्सर कहते भी तो है

जो जैसा होता है, वैसा ही अच्छा लगता है

बनावटीपन सुन्दरता को ढक लेता है

तन-मन-धन से बाहर जो भी हम देते है

वो दुगना होकर मिलता है



तो प्रकृति को भी उसका स्वरूप चाहिए

वही हरियाली, साफ हवा चाहिए

भागती हुई जिन्दगी में

बीच-बीच में थोड़ा ठहराव चाहिए



मनुष्य-प्रकृति में जब अनुपात सही होगा

सही अर्थ में एक सुन्दर संगम होगा

फिर वो दिन दूर नहीं जब

प्रकृति का प्यार भर-भर कर

हर घर में बरसेगा !!!







                                          लेखिका - रीना यादव

जन्मदिन मुबारक हो माँ


जन्मदिन मुबारक हो माँ



जन्मदिन मुबारक हो माँ

कहती है मेरी प्यारी परी

ढेर सारी शुभकामनाओं से

भर दी है मेरी झोली



खुशकिस्मती कहु  या कहु मेरा भाग्य

इतना प्यार मिला मुझे

बहुत ही बड़ा मेरा यह सौभाग्य

खुश मन होकर लिख रहा यह काव्य



कभी-कभी सोचूँ कि

माँ-बेटी का यह रिश्ता

शायद बदल गया है

तुम्हारे रूप में बेटा मुझे

मेरी माँ का स्वरूप मिल गया है



दिल में तुम्हारे कितना प्यार

मेरे लिए भरा है

जिसे जताने के लिए यह

धरती-आकाश भी कम पढ़ गया है



कभी सजा रही है तुम दीवारे

कभी फुला रही तुम गुब्बारे

लिख रही तुम उस पर

“हैप्पी बर्थडे” माँ

जगमगा रही प्यार से

सजी हुई दीवारे



लिखे हुए प्यार से सच्चाई से

तुमने अनगिनत ख़त मेरे लिए

एक-एक ख़त बयां कर रहा

तुम्हारा लगाव मुझसे



इतना ही नही, बना रही

तुम मेरे लिए केक भी

छुपते-छुपाते

योजनाएँ कितनी बनाई तुमने

प्यारे से रिश्ते के

गीत हम दोनों है गुनगुनाते



वो टिकी-टिकी टेक का खेल

वॉट कलर यूं वांट

है कर रहे हम सारे कार्य

उसके अनुसार

सिमट आया है तुम्हारे रूप में

इस संसार का ढेर सारा प्यार



डांस का प्रोगाम भी

तुमने है बनाया हुआ

मनोरंजन से भरा दिन

और खुशियों से नहाया हुआ



देखना चाहो बस मुस्कान तुम

हर पल मेरे चेहरे पर

सोचूँ कभी-कभी कितनी भाग्यवान हूँ मैं

सब कुछ मिल गया मुझे

कमी ना कोई जीवन में मेरे अब



रिश्ता प्यार का यह सदा यूँ ही बना रहे

चाहूँ अगले जन्म में हम

रिश्ते को अदल-बदल कर रहे

जिसमे मैं तुम्हारी बेटी

और तुम मेरी माँ रहो !





लेखिका  - रीना यादव